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भगवान महावीर
और हाथी
महावीर गुरुकुल में मन लगा कर पढ़ रहा था। गुरु उसे जीवन का हर पहलु सीखा रहे थे , महावीर हर चीज़ में निपुण था। गुरु उससे सदा प्रसन्न रहते थे , वो गुरु का चहीता विद्यार्थी था। एक दिन महावीर और उसके दोस्त गाँवो की सैर कर रहे थे।
उन्होंने देखा की लोग घबरा कर इधर उधर भाग रहे थे। मदद मांग रहे थे वो चीखते हुए अपने प्राण बचा के भाग रहे थे। महावीर और उसके दोस्तों ने एक बहुत ही बड़ा हाथी देखा वो अपने रस्ते में आयी हर चीज़ को कुचलते हुए आगे बढ़ रहा था पेड़ झोपड़िया उखाड़ रहा था।
महावीर के सारे दोस्त डर गए तब महावीर ने कहा चिंता मत करो मैं कुछ करता हूँ। उसके दोस्त ने कहा महावीर वो हाथी तुम्हे कुचल देगा , महावीर ने कहाँ चिंता मत करो संत खरे रहो , महावीर धीरे-धीरे चलते हुए उस हाथी के पास जाकर खरा हो गया।
महावीर ने हाथी की सुर को हाथ लगाया अच्चानक हाथी संत हुआ और उसने महावीर के सामने घुटने टेके , महावीर के दोस्त और गॉव वाले चकित हुए
सभी लोगो महावीर को ध्यावाद दिया , महावीर ने उनके जीवन और उनके घर बचाये थे उन्होंने कहाँ महावीर की जय हो ! महावीर की जय हो। एक बूढ़े आदमी ने कहा हमारा राज कुमार कितना वीर है। मुझे भविष्या वाणी याद है हमारे राज कुमार का जन्म महान कामो के लिए ही हुआ है
लालची आदमी और एक कंजूस
राजा अकबर के रियासत में एक कंजूस रहता था वो तिनके और कीचड़ से बानी एक छोटी सी झोपड़ी में रहता था वो बहोत कम पैसे खर्च करता था बचे हुए पैसे एक संदूक में रखता था वो ये संदूक अपनी झोपड़ी के एक कोने में छिपा कर रखता था।
एक दिन उसके झोपड़ी में आग लग गयी और वो चिल्लाने लगा ये सुनकर लोग बाल्टी में पानी भर आग पर काबू करने की कोसिस करने लगे ,पर आग काबू में नहीं आती है वो कंजूस जोर जोर से रोने लगता है। ये सुनकर एक सुनार कहता है आप इतना क्यों रो रहे है ये तो केवल एक तिनके से बानी झोपड़ी है।
ये सुनकर कंजूस कहता आप नहीं जानते है मैंने अपनी जीवन भर की कमाई एक संदूक में राखी है जो इस वक़्त मेरे घर में है। ये सुनकर सुनार कहता है की में वो संदूक ले आऊंगा लेकिन उसमे से जो मेरी मर्ज़ी होगी वो आपको दे दूंगा। कंजूस मान जाता है।
सुनार घर में जाता है और संदूक ले आता है , काजुस वो बक्सा लेने जाता है तभी सुनार उसे रोक देता है। और कहता मैंने आपको कहा था की मैं आपको उतना ही दूंगा जितनी मेरी इक्षा हो और सारि मुद्रा उस बक्से से निकाल लेता है और खाली बक्सा कंजूस को देता है।
कंजूस बोलता सरा सर अन्याय है ममानता हूँ तुमने मेरी मदद की लेकिन तुम पूरा ले लोगें , सुनार ने कहा मैंने तो कहाँ था न जो मेरी इक्षा होगी वही दूंगा कुछ देर तक दोनों में तर्क चलता रहा आखिर कार उन्दोनो ने बीरबल के पास न्याय मांगने की सोची।
बीरबल उन दोनों की बाते सुनता है और सुनार से बोलता है ठीक है सुनार बताओ तुम्हारी क्या इक्षा है , सुनार बोलता है सारे मुद्राये ,
बीरबल बोलता है तुम्हारे अनुसार तो सरे मुद्राये कंजूस को मिलने चाहिए क्युकी तुमने उससे कहा था की तुम उसे वही दोगे जो तुम्हारी इक्षा होगा।
सुनार समझ गया की बीरबल ने उसे उसी के बातों से चित कर दिया।
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